हाथों की छुपी लकीरों में, गर भाग्य हमारे होते, भाग्य तो उनके भी होते, जिनके हाथ नहीं होते। रहते जो आश्वस्त हम तो, कर्म प्रधान नहीं होते, पढ़कर अपने भाग्य की रेखा, चुपचाप हम सोते। करते सत्कर्म जीवन में, हाथों की लकीरें बनती, लकीर का फकीर जो बनते, जीवन भर हैं रोते। संगत , रंगत और सौम्यता, दर्शाती है हाथों की लकीरें। पर सच सच बतलाना कि, क्या यही बदलती है तकदीरें।। :- काव्य पथिक Team 👉आइए आज लिखते हैं कुछ बनती बिगड़ती हाथों की लकीरों की, .... कृपया कोलाब करके Done✔️ कीजिए और अपने दोस्तों को भी कोलाब करने #हाथोंकीलकीरें कीजिए :-