चला ही नहीं जाता ज़िंदगी तेरे उसूलों पर खामियाँ हममे बहुत हैं या तेरे रसूलों पर साँचा एक सा इंसान का तो जीने में फर्क क्यूँ कोई चलता है फूल पर तो कोई बबूलों पर दौलत की मुट्ठी में इस कदर कैद है दुनिया एक अंगुली न उठी गैर कानूनी दलीलों पर कोई औकात ही नहीं तू जीत पाये उससे एक समंदर ही भारी है सैकड़ों झीलों पर उन राहों में फूलों की उम्मीद न रखा कर वो फर्ज की राह हैं तू चलाकर कीलों पर ए मुसाफिर चल कि तेरे हौसलों के लिए पत्थर तो मिलेंगे जगह जगह मीलों पर ©अज्ञात #ग़ज़ल