मास्टर जी को बीमार हुए आज सात दिन से उपर हो गए थे।अब तो धीरे धीरे उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी।आज सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी।
"मास्टरजी थोड़ा हिम्मत रखो।मैंने आलोक को फोन कर दिया है।वो आता ही होगा"। मास्टर जी की पत्नी उनको झूठी दिलासा दिए जा रही थी।
"उसको आना होता तो उसी रोज न आ जाता" मास्टर जी ने बड़ी मुश्किल से बोलते हुए कहा।वो वैसे ही नहीं आता ,ये बीमारी तो फिर भी ऐसी है।अपने अपनों को नहीं पहचान रहे।
सारे गांव में कोरोना का प्रकोप फैला हुआ था।शायद ही कोई घर बचा हो।मास्टरजी और उनकी पत्नी यहां अकेले रहते थे।एक बेटा था जिसको इन्होंने खूब पढ़ाया।उसकी शहर में नौकरी थी।शादी के बाद वो वहीं बस गया।गांव आए हुए भी उसको बहुत अरसा हो गया था।जब मास्टरजी बीमार हुए तो उनकी पत्नी ने उसको फोन किया तो उसने व्यस्तता का बहाना बना अपना पल्ला झाड़ लिया।
मास्टर जी की हालत बहुत खराब होती जा रही थी।कभी भी कुछ भी हो सकता था। उनकी पत्नी को कुछ समझ नही आ रहा था ।वो भागी भागी पड़ोस के घर में गई।बहुत दरवाजा खटखटाया पर कोई बाहर नहीं निकला।बदहवास हालत में फिर वो अपने घर की ओर दौड़ी।लेकिन तब तक होनी अपना खेल खेल चुकी थी।
"मास्टरजी ये आपने ठीक नही किया।मेरा इंतजार तो करते"वो पागलों जैसे उन्हें पकड़ कर रोए जा रही थी।
फिर एकदम से वो चुप हो गई ।उसको अब चिंता हो रही थी की उनका संस्कार कैसे करेगी।बेटे को फोन किया तो वो बोला -
"बाबूजी को कोरोना हुआ था मां,तुम कैसे बच्चों बाली बातें कर रही हो। मैं वहां आकर अपने परिवार को खतरे में कैसे डाल दूं।पास ही गंगा घाट है कोई इंतजाम करवा कर बाबूजी को प्रवाहित करवा दो"।इतना बोल कर उसने फोन काट दिया। #बूंदे#coronavirus#lockdown