एक मुलाक़ात ले जाती है कई रातों की नींद उम्र भर के साथ का न जाने क्या दाम होगा आज आगे बढ़ के उसने पूछा है हाल मेरा ज़रूर मेरे से कुछ अब उसको काम होगा जब सोच ही लिया कुछ कर के दिखाना है अब तो जरा सा आराम भी हराम होगा मेरी एक अदने से शेर पे तेरी वाह वाह मेरा उम्र भर का सबसे बड़ा इनाम होगा जलते हुए सूरज को उसने फिर बुझा डाला देखना तुम इसका नाम ज़रूर शाम होगा वो फिर से क़त्ल कर के आयी है सरे बाजार लगता आज फिर कोई बेकसूर बदनाम होगा #रमज़ान_कोराकाग़ज़ रमज़ान तेईसवाँ दिन