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बेटी तू दीप एक घर दो बसाय रही है 👇 कव


बेटी तू दीप एक घर दो बसाय रही है
 
       👇 

कविता कैप्शन में पढ़े


✍️रिंकी



 छूट रहा है सब कुछ ऐसे
जैसे फिसल गई हैं हाथो से रेत
बाबा के कंधों पर सर रख कर 
 सोती थी जो लाडली 
जा रही घर छोड़ दूजे परदेश
कह रही बेटी माँ का आँचल पकड़कर
छोड़ रही साथ तू , 
राह आधा चलकर

बेटी तू दीप एक घर दो बसाय रही है
 
       👇 

कविता कैप्शन में पढ़े


✍️रिंकी



 छूट रहा है सब कुछ ऐसे
जैसे फिसल गई हैं हाथो से रेत
बाबा के कंधों पर सर रख कर 
 सोती थी जो लाडली 
जा रही घर छोड़ दूजे परदेश
कह रही बेटी माँ का आँचल पकड़कर
छोड़ रही साथ तू , 
राह आधा चलकर