Nojoto: Largest Storytelling Platform

ठंढी-ठंढ़ी पवन जब बहती पतंगें जब गगन को छूती, डोर

ठंढी-ठंढ़ी पवन जब बहती
पतंगें जब गगन को छूती, 
डोर थामे उम्मीद यहाँ उगती
नीले नभ में उमंगें जग उठती, 
बितते वर्षों से सबने सीखी 
नव वर्ष की पुरानी ये रीति, 
निश्चित है इसकी एक तिथि
जनवरी की ये खास अतिथि, 
चौदह को चलती एक नीति
तैयारी हो जिसकी कुछ ऐसी, 
चुड़ा-दही में गुड़ की गस्ती
आलू-गोभी में मटर की मस्ती, 
तिल की मिष्टि भाँति-भाँति
मीठी महके स्वाद रिश्तों की, 
तिती-मिठी,चटपटी ये यारी
खिचड़ी रात्रि की सब पर भारी, 
यूँ हेर-फेर कर अपनों में बँटती
बढ़ा दे बहुत स्वाद अपनेपन की, 
हमको तो ये बहुत ही भाती 
आपको भी मुबारक हो संक्रान्ति ।

©Deepali Singh मकर संक्रान्ति
ठंढी-ठंढ़ी पवन जब बहती
पतंगें जब गगन को छूती, 
डोर थामे उम्मीद यहाँ उगती
नीले नभ में उमंगें जग उठती, 
बितते वर्षों से सबने सीखी 
नव वर्ष की पुरानी ये रीति, 
निश्चित है इसकी एक तिथि
जनवरी की ये खास अतिथि, 
चौदह को चलती एक नीति
तैयारी हो जिसकी कुछ ऐसी, 
चुड़ा-दही में गुड़ की गस्ती
आलू-गोभी में मटर की मस्ती, 
तिल की मिष्टि भाँति-भाँति
मीठी महके स्वाद रिश्तों की, 
तिती-मिठी,चटपटी ये यारी
खिचड़ी रात्रि की सब पर भारी, 
यूँ हेर-फेर कर अपनों में बँटती
बढ़ा दे बहुत स्वाद अपनेपन की, 
हमको तो ये बहुत ही भाती 
आपको भी मुबारक हो संक्रान्ति ।

©Deepali Singh मकर संक्रान्ति
deepalisingh8800

Deepali Singh

New Creator
streak icon304

मकर संक्रान्ति #कविता