मैं अपनी शून्यवत स्तिथी को मीठी कल्पनाओ की परिधि मे बांधबे लगा हूँ औऱ अपने सुखद विचारों को मोहक परिधानों मे डक लेता हूँ क्योंकि वस्तत ये विचार है कल्पनाये है जोयथार्थ से कोसो दूर हैँ ... वे उस एकाकी पक्षी की तरह हैँ जो अकेला दूर आकाश मे अपने पंखो से उसे नापता हैँ शून्यवत