शीर्षक: भय का दरवाजा आज कुछ ऐसा नया नहीं, जिसकी चर्चा की जाये भय का दरवाजा खुला, अच्छा है, चुप ही रहा जाये कहने को स्वतंत्रता है, पर आम आदमी सहमा सा है बाते रोशनी की है, पर जलवा तो अंधकार का सा है क्या करेंगे जानकर, आखिर हमारा अधिकार क्या है सोये है, बस दिखाये सपनों के सच होने का इंतजार है जीवन को विश्वास न दे पाये, तभी मौत से भाग रहे है क्या कहें, कभी कभी लगता खुद को योंही खो रहे है कुछ तो गड़बड़ हो रही है, खून का रंग बदल रहा है अंदर से सब कुछ टूट रहा, घुटन से दम फूल रहा है आज हर आदमी हतास है, यही जीने की तस्वीर है अब किसे क्या कहे, हर आदमी तो यहाँ अब बीमार है कभी आग थी सीनें में, जो आजादी के लिए जलती ठंडी हुई मशाल, अब जलाने वाले हाथों को तरसती ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali भय का दरवाजा #togetherforever