Unsplash पैसा बोलता है पैसा बोलता है, हर ज़ुबां पे छा जाता है, जहाँ इमान बिके, वहाँ सिर झुका जाता है। औकात की परिभाषा बदलती है पल में, हैसियत से बड़ी, अब दौलत बताई जाती है। खून-पसीने की कीमत नहीं, बस नोटों की गिनती, रिश्ते-नाते सब, बन गए हैं एक तराजू की इकाई। जहाँ दिलों का व्यापार हो, और जज़्बात बेमानी, वहाँ इंसानियत मरती है, बस दौलत है कहानी। गरीब का सच, अमीर का झूठ, सब छुप जाता है, पैसे के रौशनी में, हर अंधेरा घुल जाता है। सच कहें तो ये समाज, एक बाजार बन चुका है, जहाँ कीमत से ज्यादा, कुछ भी नहीं रखा है। बंद मुट्ठी में सपने, खुली हथेली में सिक्के, यहाँ इंसान नहीं, सिर्फ नोटों से रिश्ता टिके। पैसा बोलता है, और सब कुछ सुन लेता है, जहाँ हक की आवाज़, चुपचाप सह लेता है। ये डार्क रियलिटी है, पर इसे कौन माने, जहाँ इंसानियत के बदले, दौलत के तराने। पैसा बोलता है, ये सच है, झूठ नहीं, पर इसके आगे, सब कुछ बेबस है सही। ©पूर्वार्थ #पैसा_बोलता_है