क्यों डरी हुई सी मैं हूँ? इस डरे हुए से लम्हें में? वो बहादुरी अब कहाँ गयी जो भरी हुई थी सीने में? चाहें थी बचपन की के मैं जल्दी से बड़ी हो जाऊँ अब, बड़ी हुई तो पता चला है मुश्किल ही मुश्किल जीने में। बहुत बड़ी थी दुनिया मेरी, संगी साथी ख़ूब थें, अब मैं क़ैद समाजी ज़ंजीरों में हूँ, ढूँढू बचपन दरीचे से। लड़की होना ख़ूब था भाता, रंगीन चूड़ियाँ संग झांझरियाँ, वो सबकुछ तो छिन गया, अब डरती हूँ बैरी नैन से। ठहाके जो मैं ख़ूब लगाती बचपन के अब भूल चली, बाबा मैं जीना चाहती हूँ, तू भेज कहीं दूर किसी बहाने से। मिलती नहीं अब वो राजकुमारी, खोयी किसी कहानी में, ख़ून के आंसू रोये ये माटी, बोले बेटी अब ना आना इस ज़माने में। ♥️ Challenge-689 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।