शीर्षक: अंतिम कील मकसदों के शहर में, अब अकेला ही रहता हूँ मरे हुए सपनों के ताबूत पर, अंतिम कील ठोकता हूँ।। काम जरा समझदारी का है, धीमे से ही करता हूँ ये नहीं कहूँगा, मरे हुए के दर्द को नहीं समझता हूँ ।। शहर की रोशनियों की जवानी, बड़ी अजीब है हर चलने वाला ऊपर से अमीर, भीतर से गरीब है।। चाही मंजिले न मिली, पर नजर में हर रोज रही हाँ, अफसोस के कारवाँ में, वो सदा आगे ही रही।। शहर आज भी, सुँदर हसरतों के जाल में फँसा है जवान मंजिलों के गले मे, किसी ने तो फंदा कसा है।। रुतबा रोशनी का शहर में, आज भी कामयाब है फर्क नहीं यहाँ, कौन खुशनसीब, कौन बदनसीब है।। ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali अंतिम कील #MereKhayaal