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कुछ तुम ही कहो , मौन हो स्तब्ध हूं मैं । कुछ तो त

कुछ तुम ही कहो , मौन हो स्तब्ध हूं मैं । 
कुछ तो तुम उपकार करो , शब्द दो अशब्द हूं मैं।।

क्या मुझे कुछ अनुभव है ? 
हां, प्रतीत तो कुछ होता सा है ।
कहो , कुछ तुम ही कहो, 
आखिर क्यों, मन से क्षुभित हूं मैं ।।

क्या मुझे कुछ दुःख है ? 
दुःख, वही प्रेम का वियोग सा है ।
शायद हां, लेकिन तुम कुछ कहो, 
क्यों आखिर हृदय से व्यथित हूं मैं ।।

क्या तुम भी समझ ना पायी मुझे ,
तो कौन समझेगा ? तुम्हारे बिन अधूरा सा हूं मैं ।
कहो, कहो ना , तुम कुछ कह ही दो ना ,
आखिर कब तक शब्द बिन निःशब्द रहूं मैं ।।

कुछ तुम ही कहो , ........................... ।।

©S.Badoni गढ़वाली #अंतरात्मा
कुछ तुम ही कहो , मौन हो स्तब्ध हूं मैं । 
कुछ तो तुम उपकार करो , शब्द दो अशब्द हूं मैं।।

क्या मुझे कुछ अनुभव है ? 
हां, प्रतीत तो कुछ होता सा है ।
कहो , कुछ तुम ही कहो, 
आखिर क्यों, मन से क्षुभित हूं मैं ।।

क्या मुझे कुछ दुःख है ? 
दुःख, वही प्रेम का वियोग सा है ।
शायद हां, लेकिन तुम कुछ कहो, 
क्यों आखिर हृदय से व्यथित हूं मैं ।।

क्या तुम भी समझ ना पायी मुझे ,
तो कौन समझेगा ? तुम्हारे बिन अधूरा सा हूं मैं ।
कहो, कहो ना , तुम कुछ कह ही दो ना ,
आखिर कब तक शब्द बिन निःशब्द रहूं मैं ।।

कुछ तुम ही कहो , ........................... ।।

©S.Badoni गढ़वाली #अंतरात्मा