जन जन की अभिलाषा भूले।। ये मेरा है, ये तेरा है, हम हम की परिभाषा भूले। खुदगर्ज़ी हावी है, जन जन की अभिलाषा भूले।। किसको कहें, क्या क्या कहें, ठगे ठगे से लगते हैं। आंखें खोल रहे सोये, बस, जगे जगे से लगते हैं।। सहर भी मानो अब, रात सी काली होने लगी। मन काला, पटाखों से ही दीवाली होने लगी।। शरीर जगा, आत्मा तो मौन बदन में सोने लगी। इंसानो की बस्ती में, इंसानी फितरत खोने लगी।। खुद के अहम को जान, क्यूँ है कोई बोध नही। इतिहास गवाही देता है, फिर भी कोई शोध नही।। मैं कलमकार लिख जाऊंगा, मन मे रही निराशा नही। इंसां तू इंसां तो रहा नही, जो मन मे रही जिज्ञासा नही।। अपनो को समझ गैर, निजमन की पिपासा भूले। खुदगर्ज़ी हावी है, जन जन की अभिलाषा भूले।। रजनीश "स्वच्छंद" #NojotoQuote जन जन की अभिलाषा भूले।।।