बहुत पी चुके आप घर जाइए कसम नाज़नीं की सँवर जाइए हुआ वो न हासिल बला से मेरी ज़रूरी नहीं है बिखर जाइए तक़ाज़ा सफ़र का मुसाफ़िर यही जो रहबर ही ना हो उतर जाइए समां को बनाते हो तुम ग़मज़दा ये कहते हैं अहल-ए-नज़र जाइए कि खुलता नहीं रात भर मैकदा जो रुकना हो ता-बा-सहर जाइए समय है अभी कुछ भी बिगड़ा नहीं मुहौबत से अब तो मुकर जाइए इक साक़ी से गुफ़्तगू...... 💔 नाज़नीं - महबूबा तक़ाज़ा - demand रहबर - रास्ता दिखलाने वाला अहल-ए-नज़र - होशियार लोग मैकदा - शराबखाना ता-बा-सहर - सुबह तक