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तकलीफें बेवजह बढ़ गई हैं, बातेँ हादसे से भिड़ गई

तकलीफें बेवजह बढ़ गई हैं, 
बातेँ हादसे से भिड़ गई हैं,
गुमराह हूँ बेवक्त उलझनों में, 
मुस्कुराहट भी खामोशी के भेंट चढ़ गई है। ।
जिंदगी धागे में लिपट सिकुड़ गई है, 
आत्मा जैसे तन से बिछुड़ गई है,,
फड़फड़ा रहा मन पंछी माफिक, 
मोहब्बतें अफसोस में बिगड़ गई हैं। ।।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले, 
खुद की जुबानी। ।

©Santosh Verma
  #बेवजह #