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मृत्यु ही मृत्यु क़े दाग़ है सब तरफ कितनी बार तुम

मृत्यु ही मृत्यु क़े  दाग़ है सब तरफ
कितनी बार  तुम नहीं  जन्मे
कितनी बार  तुम नहीं मरे हो
तुम तो  चलते फिरते एक जीवंत  मरघट हो 
न जाने  कितनी  आर्थियों का जोड़ हो
तुम्हारे पीछे  आर्थियों की  लम्बी कतारे लगी है
तुम्हारे आगे न  जाने  कितनी लबी कतारे आर्थियों क़ी
"इ मुर्दन का गाँव है "  कबीर  ठीक  ही  कहते थे
ये बस्तीया नहीं मरघट  हैँ

©Parasram Arora मरघट......
मृत्यु ही मृत्यु क़े  दाग़ है सब तरफ
कितनी बार  तुम नहीं  जन्मे
कितनी बार  तुम नहीं मरे हो
तुम तो  चलते फिरते एक जीवंत  मरघट हो 
न जाने  कितनी  आर्थियों का जोड़ हो
तुम्हारे पीछे  आर्थियों की  लम्बी कतारे लगी है
तुम्हारे आगे न  जाने  कितनी लबी कतारे आर्थियों क़ी
"इ मुर्दन का गाँव है "  कबीर  ठीक  ही  कहते थे
ये बस्तीया नहीं मरघट  हैँ

©Parasram Arora मरघट......

मरघट......