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संत कि आत्मा कहती है । ये वर्दी किस काम की जब जान

संत कि आत्मा  कहती है ।
ये वर्दी किस काम की जब जान बचायी नही मेरी ।
ये बन्दूक उठायी क्यू ।
जब चलायी जाती नही ।
पेट इनका पिटारा हैं ।
इनका हैवानियत से भाईचारा है ।
कोशिश करते तो मै यहाँ होता ।
हमेशा केलिये ना सोता ।
वर्दी वाले तो बहोत महान ।
वही हैं सचे इंसान ।
लेकिन उन्मे भी कुछ नाकारा है ।
उनका तो कायारता से य़ाराना है ।
मै इलजाम लगाता नही ।
जो मेहसूस किया वो कहता हु ।
इतने लोगो ने वारं किया ।
एक बार नही बार बार किया ।
उनका दिया हुआ दर्द मुझे ।
मरके भि मेहसूस होता है ।
खून नही अब दर्द बहे ।
मेरी आत्मा कैसे ये सहे ।
कब मुझे इंसाफ मिले ।
मेरे घाओ को ये सिले ।

©Author Shivam kumar Mishra
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