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"स्त्री" by -चंchal read in caption ज

"स्त्री"
       


  by
 -चंchal
read in caption जो पर दिये ईश्वर ने गगन को छूने के लिए उन्हें अपनी मंज़िल बदलकर पिंजरे को आशियाना बनाना होगा।
न सरकार की मौन साधना टूटेगी न हैवानियत अपना सिर मुंडवायेगी। इस देश में न्याय अन्याय की बाते तो फ़िज़ूल मालूम पड़ती है, अपराध की विस्मृति हो जाने पर सज़ा मुक्कमल होती है।
याचक की जान तो कई सालो पहले ही जा चुकी होती है।
ओ री चिरैया तेरी आज़ादी तेरी आबरू और जान से महँगी नही। याद रखना लेकिन द्रोपदी का पिंजरा सुदृढ़ पांच दीवारों से महफूज़ था फिर भी अपमान का वो ज़हर उसे पीना पड़ा।
अगर द्रोपदी की जगह शिखण्डी होती तो भी क्या इतिहास के पन्ने ज्यो के त्यों लिखे जाते क्या इतना आसान होता दुशासन का उसके केश पकड़कर भरे दरबार में लाना ।
हैं स्त्री ! अगर तू अपनी कोमलता त्यागेगी नही तब तक ये वहशी तुझे निर्जीव कीमती हीरा समझ तेरा उपभोग छोड़ेंगे नही। क्या जरूरी है कीमती हीरा बनकर तिजोरी में सजना ? तू कोई सजावट की वस्तु तो नही सजीव है जिसे पीड़ा महसूस होती है जिसके भी कुछ अरमान है, तू हीरा नही इंसान है किसी के गले का अलंकार नही । इन ह्रदयविदारक घटनाओ को सुनकर फिर से माँ बाप अपनी बेटियों को तिजोरी में बंद करने लगेंगे। अपनी फूल सी बेटी के शरीर के छिथड़े देखने से पूर्व उसे जन्म ही न देना बेहतर समझेंगे। ओ री चिरैया तू बाज बन । हीरा नही पहाड़ बन।
फूल नही तलवार बन।
युद्ध की रणभेरी बाहर है बज रही तू शस्त्र को धारण कर ।
"स्त्री"
       


  by
 -चंchal
read in caption जो पर दिये ईश्वर ने गगन को छूने के लिए उन्हें अपनी मंज़िल बदलकर पिंजरे को आशियाना बनाना होगा।
न सरकार की मौन साधना टूटेगी न हैवानियत अपना सिर मुंडवायेगी। इस देश में न्याय अन्याय की बाते तो फ़िज़ूल मालूम पड़ती है, अपराध की विस्मृति हो जाने पर सज़ा मुक्कमल होती है।
याचक की जान तो कई सालो पहले ही जा चुकी होती है।
ओ री चिरैया तेरी आज़ादी तेरी आबरू और जान से महँगी नही। याद रखना लेकिन द्रोपदी का पिंजरा सुदृढ़ पांच दीवारों से महफूज़ था फिर भी अपमान का वो ज़हर उसे पीना पड़ा।
अगर द्रोपदी की जगह शिखण्डी होती तो भी क्या इतिहास के पन्ने ज्यो के त्यों लिखे जाते क्या इतना आसान होता दुशासन का उसके केश पकड़कर भरे दरबार में लाना ।
हैं स्त्री ! अगर तू अपनी कोमलता त्यागेगी नही तब तक ये वहशी तुझे निर्जीव कीमती हीरा समझ तेरा उपभोग छोड़ेंगे नही। क्या जरूरी है कीमती हीरा बनकर तिजोरी में सजना ? तू कोई सजावट की वस्तु तो नही सजीव है जिसे पीड़ा महसूस होती है जिसके भी कुछ अरमान है, तू हीरा नही इंसान है किसी के गले का अलंकार नही । इन ह्रदयविदारक घटनाओ को सुनकर फिर से माँ बाप अपनी बेटियों को तिजोरी में बंद करने लगेंगे। अपनी फूल सी बेटी के शरीर के छिथड़े देखने से पूर्व उसे जन्म ही न देना बेहतर समझेंगे। ओ री चिरैया तू बाज बन । हीरा नही पहाड़ बन।
फूल नही तलवार बन।
युद्ध की रणभेरी बाहर है बज रही तू शस्त्र को धारण कर ।