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वाताभ्रविभ्रममिदं वसुधाधिपत्यं आपातमात

वाताभ्रविभ्रममिदं वसुधाधिपत्यं
            आपातमात्रमधुरा विषयोपभोगाः।
प्राणास्तृणाग्रजलविन्दुसमा नराणां
            धर्मः सदा सुहृदहो न विरोधनीयः॥

अर्थ:- इस सम्पूर्ण पृथ्वी का आधिपत्य भी हवा में उड़ने वाले बादल के समान (क्षणभंगुर) है, यह धन-सम्पदा, पद-प्रतिष्ठा सदा बनी रहे ही रहेगी- ऐसा समझना केवल भ्रान्तिमात्र है। इन्द्रियों के विषय-भोग केवल आरम्भ में ही अर्थात् केवल भोगकाल में ही मधुर लगते हैं, उनका अन्त अत्यन्त दुःखदायी है। प्राण तिनके के नोक पर अटके हैं हुए जल की बूंद के समान हैं, किस क्षण निकल जाएँ कोई भरोसा नहीं। एकमात्र धर्माचरण-सत्कर्मानुष्ठान ही ऐसा है, जो मनुष्यों का  सनातन एवं सच्चा मित्र है, अतः उसका कभी विरोध ( तिरस्कार) नहीं करना चाहिये, अपितु अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक दानधर्मादि सत्कर्मानुष्ठान के अनुपालन में सतत संलग्न रहना चाहिये। दान की महिमा
वाताभ्रविभ्रममिदं वसुधाधिपत्यं
            आपातमात्रमधुरा विषयोपभोगाः।
प्राणास्तृणाग्रजलविन्दुसमा नराणां
            धर्मः सदा सुहृदहो न विरोधनीयः॥

अर्थ:- इस सम्पूर्ण पृथ्वी का आधिपत्य भी हवा में उड़ने वाले बादल के समान (क्षणभंगुर) है, यह धन-सम्पदा, पद-प्रतिष्ठा सदा बनी रहे ही रहेगी- ऐसा समझना केवल भ्रान्तिमात्र है। इन्द्रियों के विषय-भोग केवल आरम्भ में ही अर्थात् केवल भोगकाल में ही मधुर लगते हैं, उनका अन्त अत्यन्त दुःखदायी है। प्राण तिनके के नोक पर अटके हैं हुए जल की बूंद के समान हैं, किस क्षण निकल जाएँ कोई भरोसा नहीं। एकमात्र धर्माचरण-सत्कर्मानुष्ठान ही ऐसा है, जो मनुष्यों का  सनातन एवं सच्चा मित्र है, अतः उसका कभी विरोध ( तिरस्कार) नहीं करना चाहिये, अपितु अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक दानधर्मादि सत्कर्मानुष्ठान के अनुपालन में सतत संलग्न रहना चाहिये। दान की महिमा