अपना घर जहाँ ख्व़ाब आँखें बंद कर के देखा जाता है । और उन ख्व़ाबों को पूरा अपनों के साथ किया जाता है ।। जहाँ हर किसी का नादानियों से भरा बचपन । एक बूढ़ा-बूढ़ी के देखरेख में बीतता है ।। जहाँ हर रात की नींद इक नई कहानियों के साथ आती है । जहाँ कामों को तो प्राथमिकता दी जाती है । पर इन कामों में इंसान मशीन नहीं बनता है ।। जहाँ सपनों को पूरा करने के लिए पैसों की चाहत तो होती है । पर रिश्तों के आगे ये पैसे फीके पड़ जाते हैं ।। जहाँ हर सुबह उगता लाल सूरज दिखता है । जहाँ चारों ओर सरसों के पीले खेत और हरियाली होती है ।। जहाँ इन्द्रधनुष और रंग-बिरंगी तितलियाँ होती हैं । घर वह है जहाँ सपने होते हैं । और उन सपनों के साथ खड़े अपने होते हैं ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-3) अपना घर