" कुछ बात करने की तलब यूं ही अवारा रखेंगे ,
मंजूरे इश्क तब हो जब तुम भी गवारा ना समझो ,
यूं मुस्कुराए तुम फिर कहीं ना कहीं कभी बेनीसार हो जायेंगे ,
मुसलसल यूं रहा राब्ता तो आज नहीं तो कल प्यार में पर जायेगें . "
--- रबिन्द्र राम
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