#FourLinePoetry **!!** तन्हा कोई है जिस्म **!!** ************************ खंडहर सी दखती मंजिल, गुजरा हुआ कल याद दिलाती है। भटकते आत्मा का दिल, गुजरते राहगीरों का रोंगटा खड़ा कर जाती है। तन्हा कोई है जिस्म इस मंजिल में, हवाओं में भी अपना वजूद महसूस कराती है। यारों तुम मत गुजरना इसके करीब से कभी, कोई आत्मा है जो तन को झकझोर जाती है। खंडहर सी दिखती मंजिल, गुजरा हुआ कल याद दिलाती है। आरजू है अगर तुझे मिलने की भटकती आत्मा से, तू चला जा जब तुझे बुलाती है। ओझल है अभी वह आंखों से, लेकिन जिस्म महसूस कर जाती है। नर कंकाल सा झूलता दिखता यह महल , सभी गुजरते राहगीरों को डराती है। खंडहर सी दिखती मंजिल, गुजरा हुआ कल याद दिलाती है। """"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""" प्रमोद मालाकार की कलम से 07.08.2021...122 """"""""""""""""""""""""""""""", ©pramod malakar #खंडहर सी दिखती मंजिल...122