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संध्या की बीमार सी मद्दिम रौशनी मे सांस लेती

संध्या की बीमार  सी  मद्दिम  रौशनी   मे
सांस  लेती हुईं  इस बस्ती की  झुग्गियो 
कि  चिमनियों से  धुए  के   बादल  बन  कर 
उड़ रहे थे 
झुग्गी के  भीतर    दोनों  आँखों  से  पानी  पोंछति   हुईं  गृहणी 
बंसी  कीफूंक  से  चूल्हे  की  गीली  लकड़ियों  को  सुलगा कर 
मिट्टी  के  तवे  पर   रोटीया   सेक  रही थी 
अपने  उन्मादी  बच्चो की  उफनती  भूख  का समाधान   उसे  ही  तो  करना  था उफनती  भूख......
संध्या की बीमार  सी  मद्दिम  रौशनी   मे
सांस  लेती हुईं  इस बस्ती की  झुग्गियो 
कि  चिमनियों से  धुए  के   बादल  बन  कर 
उड़ रहे थे 
झुग्गी के  भीतर    दोनों  आँखों  से  पानी  पोंछति   हुईं  गृहणी 
बंसी  कीफूंक  से  चूल्हे  की  गीली  लकड़ियों  को  सुलगा कर 
मिट्टी  के  तवे  पर   रोटीया   सेक  रही थी 
अपने  उन्मादी  बच्चो की  उफनती  भूख  का समाधान   उसे  ही  तो  करना  था उफनती  भूख......

उफनती भूख......