फ़ासले इतने बढ़े दीवार तक बनने लगे, खोखले वादे हुए मीनार तक बनने लगे, मंदिरों देवालयों तक सुरक्षित कुछ भी नहीं, चोरियाँ इतनी बढ़ी किवाड़ तक लगने लगे, कर्म से जिनका भरोसा उठ गया है आए दिन, फूल की देवी जगत में ख़ार तक बनने लगे, परवरिश में चूक थी या स्वार्थ की मज़बूरियाँ, पालने वाले ही घर में भार तक लगने लगे, भुलाकर पहचान हम गुमराह इतने हो गए, सिर्फ काग़ज़ पर छपे आधार तक लगने लगे, पेड़-पौधे काटकर बसने लगी अब बस्तियाँ, खेत-खलिहानों में भी घरबार तक बनने लगे, दो दिलों को जोड़ने का पुल बनाए कौन गुंजन, प्रेम और विश्वास टूटा मजार तक बनने लगे, ---शशि भूषण मिश्र चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #फ़ासले#