सवेरा मैं इश्क़ लिख लिख कर मोहब्बत के अंतिम दौर में पहुंच गया। और कमबख्त लोगों ने इसे भी आशिक़-ए-दास्तां में पढ़ लिया। काश! कोई समझ सकता मेरी कलम को तो इज़हार-ए-कत्ल ना करने को होता मैं गया। पढ़ने वाले का क्या है जनाब ये तो शब्द को सिर्फ पढ़कर रह गया। #D'95 आशिकी तुम ही से है। वरना यूँ कमबख्त कुछ भी नही है