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ज़रा सम्भल कर चल ए नादान ये इंसानो की बस्ती है,,

ज़रा सम्भल कर चल ए नादान

ये इंसानो की बस्ती है,,

यहाँ तो रब भी परखें जाते हैं

तो तेरी क्या हस्ती है। इंसानों की बस्ती
ज़रा सम्भल कर चल ए नादान

ये इंसानो की बस्ती है,,

यहाँ तो रब भी परखें जाते हैं

तो तेरी क्या हस्ती है। इंसानों की बस्ती

इंसानों की बस्ती