आखिर कब तक? कब तक जान गवाएंगे क्या जीने का हक उनका नहीं? किसी का बेटा, किसी का भाई तो किसी का सुहाग है वो लेकिन सरहद पर निडर खड़ा भारत मां की जान है वो जंग में लड़ते लड़ते अमर तो वो बन जाता है लेकिन कितना दुख होता है हमारी सांसों को महफूज़ करने के लिए वो वीर, अपनी कुर्बानी दे जाता है आखिर कब तक उनकी सांसों को दांव पर लगाकर अपनी सांसें बचाएंगे पूरी जिंदगी बीत जाने के बाद भी हम उनके प्राणों का कर्ज नहीं चुका सकते हैं क्या इतने कायर हैं हम कि अपने देश की सुरक्षा के लिए हम तलवार, बंदुकें नहीं उठा सकते हैं| # नमन अमर जवानों को....