इंसान बन क्या गया तू , समझ क्या रहा तू ... ए हवा ऐसी आ तू , इंसान को इंसान बना तू ... गलतियों का पुतला तू , ऊंचाइयों को छू कर इतराया तू ... किसी का मान ना रखा तूने , अपने को माने सर्वशक्तिमान तू ... निभाता अच्छी माया वालों के साथ तू , बिन माया वालों को कर देता नजरअंदाज तू ... तेरी यह बात लगी सीधे मेरे दिल पर , इसलिए मेरी कविता का विचित्र प्रतिबिंब है तू ... इंसान की परिभाषा बड़ी सरल है दोस्त , अपनों को अपना ... पराओ को भी अपना माने जो , असल मायने में इंसान है वो .... (स्वस्थ धीर) ©Swasth Dheer real human definition