रंग बदलती दूनियाँ में, शक्ले हैं निसार मेरी,, खंजरो की रणभूमि में,, कलम है औज़ार मेरी,, दुआएं मेरी मंदिर हैं,, सेवाएँ ही है मज़ार मेरी,, और दो कौड़ी के लोगों में, शख्शियत हैं हजार मेरी,, शख्सियत