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मुद्दतों बाद मिली है मुझे तेरे इश्क से रिहाई। अब त

मुद्दतों बाद मिली है
मुझे तेरे इश्क से रिहाई।
अब तो बहुत अच्छी लगती है,
मुझे मेरी तन्हाई।

अब अच्छी नहीं लगती
मुझको भोर की पुरवाई।
तड़के ही तो मिली थी,
मुझको तुझसे रुशवाई।

अब अच्छी लगती है ,
मुझे मेरी  बुराई।
क्योंकि लेकर ही डूब गईं
मुझे मेरी ही अच्छाई।।

©harsha mishra
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