मुसलसल सानेहा का शिकार हो रही है, जिंदगानी मेरी ख़ारजार हो रही है। घर मेरा बह गया है आब - ए- चश्मों मे, शरारा सी ऑंखें आबशार हो रही है। आरज़ू थी जिसकी सोहबत में रहने की, यार वो आशना भी अग्यार हो रही है। इक गुलनार खिला है मौसम - ए - पतझड़ में, उसे देखने की तजस्सुस सवार हो रही है। मिल्कियत से रब्त महज़ शोहराओ तक था, बाद मरने के हर शय बेज़ार हो रही है। ©@deep_sunshine1210 #gazal #gazallover #Galib #all #allamaiqba #Shades