ओढ़े तन बाघम्बर छाला। पहन गले सर्पों की माला।। शिवजी लेकर चले बराती। भूत-प्रेत हैं शिव के साथी।। हर्षित हो दुँदुभी बजाएँ। महादेव की महिमा गाएं।। झूम रहे हैं नन्दी ऋंगी। रूप बनाए सब बहुरंगी।। पहुँचे शिव गौरी के द्वारे। नगर निवासी रूप निहारे।। देख रूप शिव अति भयंकर। भागी मैना रानी डरकर।। वर बौराहा औघड़ दानी। कैसे व्याहूँ बिटिया रानी।। सोच-सोच मैना घबराए। रह-रहकर बेसुध हो जाए।। भोले तन पर भस्म रमाएँ। मंद-मंद शंकर मुस्काएँ।। देखि महेश्वर उमा लजाई। हर्षित होय रही प्रभु पाई।। उमा महेश्वर व्याह रचाएँ। नर मुनि देव देखि हर्षाएँ।। सकल स्वजन दे रहे बधाई।। वर्णन दोउ की कहि न जाई। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #महाशिवरात्रि