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एक हकीकत को समझने चले थे मगर औंस की बूंद सी जिंदग

एक हकीकत को समझने चले थे
 मगर औंस की बूंद सी जिंदगी 
झर्रे से गिरती हुई,
कहीं दीप्त हो गई है 
इठलाती हुई रेशम के धागों सी जिंदगी 
फिर कटाक्ष तंतु में उलझ गई है 
है पावन हाथ उन्हें सुलझाने को
यहां बनते बनते हर बात बिगड़ गई है।।

©Repressed desire
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