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क्रोध का चमन जब हम निराश की आशा ऐसे विकट स्थिति मे

क्रोध का चमन जब हम निराश की आशा ऐसे विकट स्थिति में फंसे होते हैं जिस से बाहर निकलने की दूर-दूर तक कोई राह नहीं दिखाई पड़ती तो हम विश्व सत्ता की इस हालत में क्रोधित हो उठते हैं कभी कभी सोचा हुआ जब पूरा नहीं हो पाता तो हम उग्र होते हैं आशय यह है कि अन्य मानवीय भावों की तरह ही क्रोध भी मानव का स्वभाविक भाव है दूसरे शब्दों में क्रोध शारीरिक एवं भावनात्मक पीड़ा के प्रति नरसिंह प्रतिक्रिया है क्रोध की अवस्था में हम सामने वाले को अपनी कड़वी बातों से अधिक से अधिक दुख पहुंचाना चाहते हैं इसकी तुलना उसे देखते हुए अंगारों से की जाती है जिसे एक क्रोधित व्यक्ति अपने हाथ में संभाले हुए रखता है जिसके कारण वह खुद बुरी तरह से आहत हो जाता है मानव जीवन में क्रोध का असर अनंत ही घातक होता है यह व्याख्याता परिवारिक और सुभाष जी कल हल एवं तबाही का कारण बनता है महाभारत के 1 पर्व में यक्ष ने युधिष्ठिर से एक प्रश्न पूछा था इस दुनिया में दुखों से कौन मुक्त है रिश्ता ने उत्तर दिया जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता वह हमेशा ही दुखों से मुक्त रहता है क्रोध को श्रेणिक पागलपन की संज्ञा दी जाती है क्योंकि क्रोध के भाव वेश में इंसान के विवेक की आंखें बंद हो जाती हैं अस्तूर ने एक बार कहा था कोई भी व्यक्ति क्रोध हो सकता है और यह आसन है किंतु उचित व्यक्ति के साथ उचित मात्र में उचित समय पर विवेकपूर्ण आदर्शों के लिए उचित ढंग से क्रोधित होना ना होना उत्सव के वश में होता है और ना ही यह एक ऐसा आसन होता है अर्थ अर्थ क्रोध की दिशा में भी विवेक से कार्य करने की दर करार है अन्यथा शिवाय पश्चाताप के कुछ भी हासिल नहीं होता चित्र पर नियंत्रण और क्षमाशील ता से हम क्रोध की अग्नि को आसानी से समित कर सकते हैं और इसके घातक परिणामों से खुद को सुरक्षित रख सकते

©Ek villain #Karunga 

#findsomeone
क्रोध का चमन जब हम निराश की आशा ऐसे विकट स्थिति में फंसे होते हैं जिस से बाहर निकलने की दूर-दूर तक कोई राह नहीं दिखाई पड़ती तो हम विश्व सत्ता की इस हालत में क्रोधित हो उठते हैं कभी कभी सोचा हुआ जब पूरा नहीं हो पाता तो हम उग्र होते हैं आशय यह है कि अन्य मानवीय भावों की तरह ही क्रोध भी मानव का स्वभाविक भाव है दूसरे शब्दों में क्रोध शारीरिक एवं भावनात्मक पीड़ा के प्रति नरसिंह प्रतिक्रिया है क्रोध की अवस्था में हम सामने वाले को अपनी कड़वी बातों से अधिक से अधिक दुख पहुंचाना चाहते हैं इसकी तुलना उसे देखते हुए अंगारों से की जाती है जिसे एक क्रोधित व्यक्ति अपने हाथ में संभाले हुए रखता है जिसके कारण वह खुद बुरी तरह से आहत हो जाता है मानव जीवन में क्रोध का असर अनंत ही घातक होता है यह व्याख्याता परिवारिक और सुभाष जी कल हल एवं तबाही का कारण बनता है महाभारत के 1 पर्व में यक्ष ने युधिष्ठिर से एक प्रश्न पूछा था इस दुनिया में दुखों से कौन मुक्त है रिश्ता ने उत्तर दिया जो व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता वह हमेशा ही दुखों से मुक्त रहता है क्रोध को श्रेणिक पागलपन की संज्ञा दी जाती है क्योंकि क्रोध के भाव वेश में इंसान के विवेक की आंखें बंद हो जाती हैं अस्तूर ने एक बार कहा था कोई भी व्यक्ति क्रोध हो सकता है और यह आसन है किंतु उचित व्यक्ति के साथ उचित मात्र में उचित समय पर विवेकपूर्ण आदर्शों के लिए उचित ढंग से क्रोधित होना ना होना उत्सव के वश में होता है और ना ही यह एक ऐसा आसन होता है अर्थ अर्थ क्रोध की दिशा में भी विवेक से कार्य करने की दर करार है अन्यथा शिवाय पश्चाताप के कुछ भी हासिल नहीं होता चित्र पर नियंत्रण और क्षमाशील ता से हम क्रोध की अग्नि को आसानी से समित कर सकते हैं और इसके घातक परिणामों से खुद को सुरक्षित रख सकते

©Ek villain #Karunga 

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