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गज़ल गिरवी थी दिल में प्रीत तेरी, उस मोहब्बत का क

गज़ल

गिरवी थी दिल में प्रीत तेरी, उस मोहब्बत का क्या करूं।
झूठे निकले वादे सभी , अब उल्फत का क्या करूं।

इंतजार में बिछाए थे कभी राहों में नैनों से फूल,
सुरभित हुए जो एहसास,उस हसरत का क्या करूं।

खुशियों से भरी  थी झोली मेरी दिल के अरमानों से,
वीरान पड़ी है दिल की नगरी,उन दौलत का क्या करूं।

नैन हो गए सूनी नदियां, काजल भी है रोती,
खाए जब धोखा, झूठी शिकायत का क्या करूं।

क्यों भटक गई इस मोह माया की नगरी में अम्बे,
धिक्कारता  मन खुद को ,इस नफरत का क्या करूं।

अम्बिका और

©Ambika Mallik
  #वादे