मानवता के इन मेलों में मेरे भी कुछ अपने हैं। एक ढलती सहमी सहमी सी सांझ मेरी है, तो उस परित्यक्त पड़े खंडहर मन्दिर में एक दीपक तक को तरसतीं वो पाषाण मूर्तियां मेरी हैं, गांव के छोर अवस्थिति वो तन्हा कुटिया, उसमें निवसित हाड़ हाड़ वो बूढ़ी बुढ़िया अहा! उसके आरे में रखा तिमिर से लड़ता वो अभिमन्यु दीया मेरा है, अपने ही दल से विलग हुआ, स्वनीड लौटता वो थका हारा चरेरू मेरा है। मानवता के इन मेलों में मेरे भी कुछ अपने हैं। ©Harendra Singh Lodhi परित्यक्त #अकेलापन #तन्हा #पराजित #हिन्दीकविता #हिन्दी_साहित्य #stay_home_stay_safe