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मुझे इश्क़ का बुख़ार कुछ इस क़दर छा रहा था। की हर रोज

मुझे इश्क़ का बुख़ार
कुछ इस क़दर छा रहा था।
की हर रोज शाम 5 बजे 
छत पे मुलाकात हो रहा था।
गालों से हटाती हुई  जुल्फों के
सहारे उनका इशारा करना
कसम से पगली इस अदा पे तेरे
कलेजे से जान ही निकल जा रहा था

©Kaushal Kaushik मुझे इश्क़ का बुख़ार
कुछ इस क़दर छा रहा था।
की हर रोज शाम 5 बजे 
छत पे मुलाकात हो रहा था।
गालों से हटाती हुई  जुल्फों के
सहारे उनका इशारा करना
कसम से पगली इस अदा पे तेरे
कलेजे से जान ही निकल जा रहा था
मुझे इश्क़ का बुख़ार
कुछ इस क़दर छा रहा था।
की हर रोज शाम 5 बजे 
छत पे मुलाकात हो रहा था।
गालों से हटाती हुई  जुल्फों के
सहारे उनका इशारा करना
कसम से पगली इस अदा पे तेरे
कलेजे से जान ही निकल जा रहा था

©Kaushal Kaushik मुझे इश्क़ का बुख़ार
कुछ इस क़दर छा रहा था।
की हर रोज शाम 5 बजे 
छत पे मुलाकात हो रहा था।
गालों से हटाती हुई  जुल्फों के
सहारे उनका इशारा करना
कसम से पगली इस अदा पे तेरे
कलेजे से जान ही निकल जा रहा था

मुझे इश्क़ का बुख़ार कुछ इस क़दर छा रहा था। की हर रोज शाम 5 बजे छत पे मुलाकात हो रहा था। गालों से हटाती हुई जुल्फों के सहारे उनका इशारा करना कसम से पगली इस अदा पे तेरे कलेजे से जान ही निकल जा रहा था #दिल #कहानी #गर्मी #प्यार #मोहब्बत #कविता #बरसात #आशिक़