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मुनाफ़े की नियत से मोहब्बत नहीं होता, ये तो घाटे की

मुनाफ़े की नियत से मोहब्बत नहीं होता,
ये तो घाटे की तिजारत है संभल कर करना,
एहसासों का सौदा हुआ तो अब ग़म कैसा,
उसकी याद में जीना... या फिर मर जाना।

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©Nitish Tiwary
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