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का से कवि बनकर चलें,भैया जीवनलाल। खा से खल की भूमि

का से कवि बनकर चलें,भैया जीवनलाल।
खा से खल की भूमिका,निभा रहे हर हाल।।
निभा रहे हर हाल,स्वयं को ही कवि मानें।
गा से गनपतचंद,रार औरों से ठानें।।
कह सतीश कविराय,बैर साहित्य के सा से।
भैया जीवनलाल,चलें बनकर कवि का से।।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #कुण्डलिया_छंद