#OpenPoetry भूख मिटाने परिवार की, आज फिर वो किसी ढाबे का छोटू बन कर खड़ा हो गया.. कुछ दिनों पहले तक जो तुतलाता था, आज फर्राटे से सारा ऑर्डर एक साँस में बोल गया.. मेरे देश का उज्जवल भविष्य देखो ना! कितनी जल्दी बड़ा हो गया.. खिलौनों का नाम भी नहीं जानता है वो, लेकिन आटे दाल का भाव जान गया.. जो डरता था कभी घर की दहलीज लांघने से, आज पूरा गांव नाप गया.. मेरे देश का उज्जवल भविष्य देखो ना! कितनी जल्दी बड़ा हो गया.. चेहरे पर अब वो रौनक नहीं दिखती उसके, और भोलापन भी बड़प्पन में तबदील हो गया.. उसके छोटे कंधे अब खुशी से नहीं फुदकते, उन पर ज़िम्मेदारियों का बोझ सवार हो गया.. मेरे देश का उज्जवल भविष्य देखो ना! कितनी जल्दी बड़ा हो गया.. आज बीमार माँ की दवाइयों के लिए, उसके खुद के निवालों का दामन खो गया.. है आज भी माँ का प्यारा छोटू ही वो, भले ही दुनिया के लिए, बड़ी जल्दी बड़ा हो गया.. भले ही दुनिया के लिए, बड़ी जल्दी बड़ा हो गया.. #OpenPoetry