ग़ज़ल प्यार को तुमसे जताना रह गया, राज दिल का ही बताना रह गया। रोज़ मिलते हैं मगर क्यूँ फासला, क्या तुझे मुझसे मिलाना रह गया। जल रहा दीपक मगर क्यूँ तीरगी, दीप दिल का ही जलाना रह गया। तिश्नगी दिल की सताये हर घड़ी, जाम होठों का पिलाना रह गया। हाल अपना क्या सुनाये अब "प्रियम" ज़ख्म अश्क़ों से बहाना रह गया। ©पंकज प्रियम तीरगी