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धीमे धीमे से ढलती हुई शाम है हाथों में पकड़ा जाम ह

धीमे धीमे से ढलती हुई शाम है हाथों में पकड़ा जाम है,
ए बेख़बर!
मेरी भीगी हुई आँखे और लरज़ते हुए होंठो पे तेरा ही नाम है।। #70
धीमे धीमे से ढलती हुई शाम है हाथों में पकड़ा जाम है,
ए बेख़बर!
मेरी भीगी हुई आँखे और लरज़ते हुए होंठो पे तेरा ही नाम है।। #70