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उड़ता है समुंदर के किनारों पर, सीगल, स्वतंत्र आसमा

उड़ता है समुंदर के किनारों पर,
सीगल, स्वतंत्र आसमान का शाह।

पंखों की लहराहट से साजगर,
सफेद दिव्यदीप, है यह अद्वितीय चिराग।

बेताब दिलों को छू जाती,
सीगल की आवाज़, बस एक मिसाल बनी रहती।

समुंदरी हवा से खेलती है वह,
स्वप्नों की ऊँचाइयों में, देती है मंजिल का सवारी।

©Arpan Jain
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