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"कसूरवार" तेरे अल्फ़ाज़ों से शुरू हुई थी जो मोहब्बत

"कसूरवार"

तेरे अल्फ़ाज़ों से शुरू हुई थी जो मोहब्बत।
मगर उसके कसूरवार सिर्फ हम ही क्यों थे।।

कितनी बार मुझे अपने नाम से पुकारा था।
मग़र उसमें भी दागदार सिर्फ हम ही क्यों थे।।

हमने तो सुना था मोहब्बत भी खुदा का रूप है।
मग़र उस रूप के गुनहगार,सिर्फ हम ही क्यों थे।।

भरी महफ़िल में जाम तो तुमने भी पिया था।
मग़र उसमें भी बदनाम सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

मोहब्बत तो हमारी आब-ऐ-आईने से ना कम थी।
मग़र उसमे भी बदसूरत सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

सुना था मोहब्बत नसीब वालों को मिलती है।
मग़र उसमें भी बदनसीब सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

मेरी इल्तिफ़ात में कमी तो बिल्कुल ना थी।
मग़र उसके भी शत्रु सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

हमारी मोहब्बत सरेआम तोड़ी भी तुमने थी।
मग़र उसमें भी उदास सिर्फ हम ही क्यों थे।।

***** #कसूरवार
"कसूरवार"

तेरे अल्फ़ाज़ों से शुरू हुई थी जो मोहब्बत।
मगर उसके कसूरवार सिर्फ हम ही क्यों थे।।

कितनी बार मुझे अपने नाम से पुकारा था।
मग़र उसमें भी दागदार सिर्फ हम ही क्यों थे।।

हमने तो सुना था मोहब्बत भी खुदा का रूप है।
मग़र उस रूप के गुनहगार,सिर्फ हम ही क्यों थे।।

भरी महफ़िल में जाम तो तुमने भी पिया था।
मग़र उसमें भी बदनाम सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

मोहब्बत तो हमारी आब-ऐ-आईने से ना कम थी।
मग़र उसमे भी बदसूरत सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

सुना था मोहब्बत नसीब वालों को मिलती है।
मग़र उसमें भी बदनसीब सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

मेरी इल्तिफ़ात में कमी तो बिल्कुल ना थी।
मग़र उसके भी शत्रु सिर्फ़ हम ही क्यों थे।।

हमारी मोहब्बत सरेआम तोड़ी भी तुमने थी।
मग़र उसमें भी उदास सिर्फ हम ही क्यों थे।।

***** #कसूरवार