तपते सूरज सी हस्ती मेरी ,धरती ही है शक्ति मेरी सीना चीर धरा का मैं, बंजर में सोना उपजाता हूँ ।।तब मैं किसान कहलाता हूँ ।। सूरज से भी पहले जगकर होता है जलना संग उसी के हर पल चलना,बस जरा दुपहरिया मे ढलना सांझ को थककर ही जब मैं वापस आता हूँ ।।तब मैं किसान कहलाता हूँ ।। मिट्टी की खुशबू में है अपना बसेरा, हरियाली का चहूं ओर है जिसमें घेरा तारों संग होता है अपना ये बिछौना स्वप्निल दुनिया को ख्वाबों में ही जब मैं संजो पाता हूँ ।।तब मैं किसान कहलाता हूँ। । अपने स्वार्थ बस आरोप जो हम पर मढते हैं छोड के हमको हाल पे अपने ,राजनीति जो करते हैं माटी का लाल हूँ मैं ,है इसका अभिमान मुझे क्या अमीर ,क्या गरीब सबको अन्न खिलाता हूँ ।।तब मैं किसान कहलाता हूँ ।। #आवरण #किसान ##aavran #farmer #farmer #farmerslife #farmersstruggle