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सच मानो दूरियाँ मुकम्मल रखती है प्रगाढ़ प्रेम को

सच मानो दूरियाँ मुकम्मल रखती है
 प्रगाढ़ प्रेम को

यादों का करवा भी वही ठहरता है 
जहा स्मृति धुँधली पड़ जाए

फिर
  प्रेम मे बेकरारी जायज है
रातों का स्याह होना भी जायज है
धड़कन के हर एक जिस्त पर उसका
 नाम जायज है

जायज है 
उसके चेहरे पर ज्वार का फट जाना
जब तुम अपनी पाचों उँगलियों के पोर से छू लो 
उसके अनछुए त्वचा के नीचे बिखरे
तूफ़ान सी खामोश को

हाँ जायज है 
प्रेम के अंगिनत भाषाओं को युगों युगों तक
 पढ़ते हुए एक दूसरे मे लापता हो जाना

सब जायज है दूरियों मे
"मैं और तुम " भी

©चाँदनी
  #prem#duriya

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