अब तक खारे पानी से सिचते आये हो अपने ह्रदय के खलिहान क़ो इसिलए फ़सल काँटों की उगनी लाज़मी थी काश इसे सीचा होता तुमने मधु जलके झरनों से तों सम्भवतः फूलों की मधु वाटिका तुम्हारे हाथ लग सकती थी इसके अतिरिक्त सुरभित हवाओं का ज़खीरा भी तुम्हे मुफ्त मे मिल सकता था और शायद तब तुम्हारे ह्रदय की गली मे भी एक सुकोमल खुसबूदार कली खिल सकती थी ©Parasram Arora सिंचाई...