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जहाँ में मात से सुंदर , परी कोई नहीं देखी। सुहान

जहाँ   में मात से सुंदर , परी कोई नहीं देखी।
सुहानी गोद ममता से, भरी  उर्वी  नहीं देखी।।

लगे है फूल से बढ़कर , सदा कोमल  मिरी माता।
सुबह से रात तक खटती,कुशल गृहिणी नहीं देखी।

करे है प्यार वो मुझसे, बिसारे सुख सभी अपने।
नयन से देखती जी भर, हृदय  तृप्ती नहीं देखी।

कभी तो  माँ जमीं होती, कभी वो आसमां होती।
बने  औलाद की खातिर, प्रखर मूर्ती नहीं देखी।

अगर एक आह भी मेरी, अचानक से  निकल आई।
छुअन माता कि पल्लू सी, दवा अच्छी नहीं देखी।

रखे थी  बंद   मुट्ठी को, किफ़ायत से करे बरकत।
उसे करते कभी स्नेहा , फ़राखोरी   नहीं   देखी।

करे सब लोग हैं बातें, खुदा के उस खुदाई की।
धरा पर दूसरी देवी, कहीं   माँ  सी नहीं देखी।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

©Sneh Lata Pandey 'sneh'
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