नुमाइश ए हुस्न करके आप महफ़िल सजाते है। हम आशिक़ त

नुमाइश ए हुस्न करके आप महफ़िल सजाते है।
हम आशिक़ तन्हाई में उल्फत के गुल खिलाते हैं।

कितने भोले बनते है जमाने के खूंखार लोग ।
बागों को उजाड़ के नादा अब बुलबुल बुलाते है।

वादियों में सफ़ेद चादरों पे अब लहू के छीटें है।
ये हालत देख कश्मीर को हम काबुल बुलाते हैं।

सच कहूँ  तो चारागर तेरी चारागिरी बिक गई ।
हाल ये है कि हकीम को भी क़ातिल बुलाते है l 

बहुत बदमिजाज़ है राजनीति मेरे देश की जय।
बिटिया घर जल्दी लौट आ तुझे बाबुल बुलाते है।

©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"
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