कोठी बंगले खड़े हुए, लालच से हैं भरे हुए, लगते तो इंसानों जैसे, पर अंदर से मरे हुए, बाहूबली कहाने वाले, रहते हरदम डरे हुए, बचपन से यादें संजोई, देख देखकर बड़े हुए, राज पाट राजा रजवारे, मिट्टी में सब गड़े हुए, शानो-शौकत देखो सारे, यहीं धरा पर पड़े हुए, मोर मुकुट तलवारें सारी, हीरा मोती जड़े हुए, हरि से नाता जोड़े 'गुंजन', अंदर बाहर हरे हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ• प्र• ©Shashi Bhushan Mishra #अंदर बाहर हरे हुए#